मुलहठी ( Liquorica root ) के गुण
मुलहठी को संस्कृत में - मधुयष्टि, यष्टिमधु । हिंदी में - मुलहठी , मुलेठी , मौरेठी । मराठी में - जेष्ठिमध । तमिल में -अतिमधुरम । गुजराती में - जेठीमध ।अरबी में - अस्लुस्सुस और लैटिन में - गिलसिराइज ग्लेब्रा के नाम से जानते है ।
मुलहठी का पेड़ 2 से 4 फुट तक ऊँचा और झाड़ीनुमा होता है ।इसके पत्ते आयताकार नुकीले होते है ।इसके फूल गुलाबी और खून के रंग के होते है ।इसके चपटे फल में दो से चार बिज होते है ।इसकी जड़े लम्बी , मोटी , मटमैली और अंदर से कुछ पिली होती है । इसकी जड़ का ही अधिक प्रयोग होता है । यह भारत में जम्मू , कश्मीर में बहुतायत मात्रा में मिलता है । इसके अलावे ईरान , अरब , और यूरोप में भी मिलता है ।
यह मधुर , शीतल , त्रिदोष नाशक , मृदुरेचक , वीर्यवर्ध्दक , वातपितनाशक , है । यह खांसी , जुकाम , स्वर की गड़बड़ी , गले के रोग , चरम रोग , केशो के रोग , सूजन ,वमन , प्यास की अधिकता , आदि में बहुत ही लाभप्रद है ।मुलहठी का उपयोग अधिक मात्रा में नही करनी चाहिए ।
खांसी में - मुलहठी के जड़ को पानी से साफ धोकर छोटे छोटे टुकड़े करके प्रत्येक दो से तीन घण्टे बाद इस वक टुकड़े को मुँह में डालकर चूसे ।इसे खांसी में बहुत ही जल्द आराम मिल जाता है ।
पेशाब में रक्त आने पर - मुनाका 10 पीस
मुलहठी 3 ग्राम
दोनों को 250 ग्राम दूध में दाल कर पका ले । इसे आग से उतार कर ठंडा कर ले ।फिर मुनका की चबाकर खाजाये ।और दूध को पी जाए ।इसे थोड़ी ही देर में पेशाब खुलकर हो जाएगा ।
पौरुष बल बढ़ाने के लिए - 5 ग्राम मुलहठी के चूर्ण को रात के सोने से पहले शुद्ध देशी घी के साथ चाट जाए ।इसे धातु पुष्ट होती है ।मर्दानी ताकत बहुत ही बढ़ जाती है ।इसका प्रयोग 40 से 45 दिनों लगतार करनी चाहिए ।
दूध बढ़ाने के लिए - मुलहठी 50 ग्राम , शनतावर 200 ग्राम दोनों कूट - पीस कर चूर्ण बनाले ।इसमें से 20 ग्राम चूर्ण 250 ग्राम दूध और 250 ग्राम पानी में उबाले ।जब जल कर आधा हो जाय तो उसे ठंडा होने के बाद थोड़ी सी चीनी या मिश्री मिलाकर रोगी को पिलादे । इस तरह दो से तिन दिनों में ही माता के स्तनों में पर्याप्त दूध उतर जायेगा ।
मुलहठी के गुणों का आयुर्वेद में विस्तार से वर्णन है ।
मुलहठी ( Liquorica root ) के गुण
Reviewed by
ayurved apnaye.blogspot.com
on
फ़रवरी 14, 2016
Rating:
5
कोई टिप्पणी नहीं: